Wednesday, November 26, 2008

फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद



तमाम कोशिशों के बाद आखिर दिल ये कह पडता है

फिर वही शाम वही ग़म ,
वही तनहाई है,
दिल को समझाने तेरी
याद चली आयी है.



फिर गिर पडे़ है हम भौतिक रूप में, और इससे पहले कि किसी की नज़रों में गिर पडे या आपकी यादों से ओझल हों, ये टाईम आउट ले रहे हैं.

फ़िल्म पडो़सन याद आयी, जिसमें आगा अपनी पत्नी से कहता है,

- जब जब जो जो होना है, तब तब सो सो होता है!

रोशन जी पर लिखा हुआ रह गया, सचिन देव बर्मन पर तीसरी कडी तैय्यार है, उसका वादा है, और बहुत सारे गीत हैं जिनका रसास्वादन करना बाकी है अभी...

फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद..( मानस के अमोघ शब्द पर खुलासा किया है)

Monday, November 3, 2008

पिया तोसे नैना लागे रे...- सचिन देव बर्मन

कड़ी - २
सचिन देव बर्मन पर दूसरी कड़ी लेकर हाज़िर हूँ.

सुनकारों से आग्रह है, की अगर उन्होंने सचिन दा पर पहली कड़ी नही भेंट की हो तो कर लेंगे ,तो इस कड़ी का सन्दर्भ समझाने में ज़रा आसानी होगी.

हम बर्मन दा के पिटारे में से कई नायाब जवाहिरात चुनते है, तो इस गानें को अग्रिम पंक्ति में पाते है.

पिया तोसे नैना लागे रे...

गाईड फ़िल्म के ४ स्टॆन्झा और ८ मिनीट के इस मेरथॊन गीत को सचिन दा बिना किसी प्रील्युड से शुरु करते है(जैसा कि वे कई बार कर चुकें हैं), और स्थाई के बाद Rich Orchestra के Interludes गीत को अपनी मीठी गिरफ़्त में ले लेते हैं. साथ ही साथ शैलेन्द्र के अतिआकर्षक बोलों की जुगलबंदी सी चलती है ताल के साथ, जो धिनक धिन धिन धिनक धिन धिन पर थमती है.

The orchestral interludes in this song are rich and varied. Though these music pieces are tailor-made for a dance choreography, unlike most dance pieces they do not remain limited to a frenzy of ghungroos, tabla and sarangi/harmonium. The orchestral interludes, here, in typical SD Burman style, are uncluttered and spontaneous. However they still use a wide variety of instruments and are richly layered. Violins, Sitars, ghungroos, tabla, drums (note the lovely use of a north eastern drum in the portion before भोर की बेला सुहानी) and the flute all fit into the overall composition like pieces in a jigsaw puzzle. Strings, as with most of Dada’s songs, are used with great felicity. Note the extremely catchy short string pieces strewn all over the song. विशेषतयाः उस जगह जहां गाना मुखडे़ पर लौटता है ...

ताल में भी हमें कहीं कहीं भटियाली शैली के दर्शन होते हैं.कहीं कहीं तबला बॆक सीट ले पृष्ठ्भूमि में चला जाता है और ड्रम पर्कशन वाद्य समूह प्रभावी हो जाते है.

मगर मेरे मित्रों , ये सब बेमानी हो जाता है जब तक हम यह भी नही कबूल कर लेते कि विजय आनंद के निर्देशन में इतने अच्छे फ़िल्मांकन और वहीदा जी की बेमिसाल नृत्य अदायगी नें सचिन दा की मेहनत में चार चांद लगा दिये है.(Waheeda is Elegence & Grace Personified, indeed !!!)

फ़िल्म में इस गीत की कहानी का केंद्रबिंदु है राजू गाईड और रोज़ी के बीच पनपते रिश्तों का -नैना लागे रे!!
फ़िर समय के बीतने के संकेत होली और दिवाली के त्यौहारके पृष्ठभूमि में इन संबंधों में प्रगाढ़ता और व्यावसायिक कार्यक्रम की क्रमवार सफलता का बेहद प्रभावी चित्रण है. बड़ी शालीनता के साथ उनके बीच स्थापित होते शारीरिक और प्रेम सम्बन्ध भी खुलते हुए दिखाते है, और गीत के बोल भी ये सूचित करते है.चमकाना उस रात को जब मिलेंगे तन मन, मिलेंगे तन मन...

ज़रा पूरे गानों के बोलों पे भी बारीकी से गौर फरमाएं जनाब. और साथ ही में अनुभव करें कि
हर अंतरे में विभिन्न रंगों के और समय के रागों का मिश्रण खूबसूरती से गढा गया है.

इसीलिये ही कहा गया है, की संगीत यह स्वार्गिक सुखों के अनुभव की चीज़ है, तार्किक बुद्धिमत्ता की नहीं.

अब देखिये, गाईड फ़िल्म का वह गीत विडियो पर, और गोते लगाईये मधुर संगीत की फुआरों से सजे झरने में.

तीसरी कड़ी अगले हफ्ते ..

Sunday, November 2, 2008

सुन मेरे बंधू रे, सुन मेरे मितवा ....

कड़ी - १
३१ अक्टूबर को पद्मश्री सचिन देव बर्मन की ३३ वीं पुण्यतिथी के दिन सारे दिन उनके गीतों को सुनता रहा, अपने मन की गहराई तक उन रचनाओं का आस्वाद लेता रहा जो हमेशा गाहे बगाहे कानों पर पड़ते तो ज़रूर थे, मगर सुकून से एक साथ
सुने नहीं गए.

उन्हे सुनने का अवसर भी बड़ा ख़ास इसलिए था, क्योंकि एक साथ जब हम उनके रचे हुए गीतों को सुनते है तो तब जाकर पता चलता है, की उनके सभी गीतों में कितनी विवि्धता थी, कितना माधुर्य था, कितनी वेदना थी.

सचिन दा निसंदेह सुरों के एक ऐसे चित्रकार थे जिन्होंने अपने हर पेंटिंग में अलग अलग विषयों पर अलग अलग रंग बिखेरे. उनके ब्रश के स्ट्रोक्स , उनका टेक्सचर , और ग्राफिक्स की विविधता उनके हर गाने में नज़र आती थी या सुनाई देती थी.

हिन्दयुग्म के आवाज़ पर सचिन दा पर एक पोस्ट लिखी तो सहजता से उनके गानों की सुरमई धुंध में मैं खोता चला गया.

मन ही नही भर रहा था. सोचा कुछ अपने यहाँ भी लिख उनको एक बार और श्रद्धांजली देकर, इज़हारे अकीदत पेश कर ,उनके संगीत से जो आज तक आनन्द लूटा है उसका कुछ क़र्ज़ तो उतार ही दूँ, भले ही अंश मात्र ही सही.

पिछले दिनों सिने संगीत को समर्पित हर एक ब्लॉग साईट पर आप पायेंगे इस महान संगीतकार पर कुछ ना कुछ लिखा हुआ , और साथ ही पायेंगे उनके ढेरों सारे गीत उनकी आवाज़ में भी. एक जगह की कमी बेहद खल रही है. श्रोता बिरादरी की जाजम इन दिनों बिछी नही किसी कारण वश. हर सू फैले दिवाली के प्रकाशमय उजियाले में इस प्रेरणा स्रोत सुरमई शमा की अनुपस्थिती ने सचिनदा के दर्द भरे गीतों से उपजी अफ़सुर्दा दिली और भी बढ़ा दी. आवाज़ दे कहां है....?

हमें कोई ग़म नही था ग़मे आशिकी से पहले ,
ना थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले...


सचिनदा के लिए काम करने के लिए बड़े बड़े गायक और गायिकाएं तरसते थे क्योंकि उनके गले की तासीर या Timbre का अचूक उपयोग वे करते थे. सेन्स्युअस गीत में आशा और गीता दत्त की आवाज़ के नैसर्गिक आउटपुट से आगे जा कर अपना एक ख़ास आउटपुट निकालने में माहिर थे. आज सजन मोहे अंग लगा ले, में मादकता का एक Undercurrent , पखावज़ की लय के मिश्रण से अद्भुत प्रभाव उत्पन्न कराते थे. वैसे ही कुछ प्रभाव उन्होंने रात अकेली है गीत में ढाला था , जिसका कान में फुसफुसानें का अलग अंदाज़ बेहद लोकप्रिय हुआ था.

भक्ति युक्त प्रेम भाव हो या संपूर्ण समर्पित अनंत आध्यात्म हो , या फिर अल्हड़ सी शोख़ सी यौवन की छुपी हुई भावाभिव्यक्ति हो , लता के पारलौकिक गले से वे रस उत्पत्ति कर हमें नवाज़ते थे ऐसी ऐसी सुरीली बंदिशों से कि हम उनके सुर सागर में डूबते तैरते बहने लगते है , और कहने लगते हैं कि कोई ना रोको दिल की उड़ान को , आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फ़िर मरने का इरादा हैं .

रफी हों या मन्ना दा, या किशोर , मुकेश , तलत अपनी अपनी जगह पर ही गाते थे उनके लिए.किसी भी गाने का मूल तत्त्व जिस पाये का होता था उसी पाये की आवाज़ वे अपने गाने के लिए लेते थे. हम बेखुदी में तुम को पुकारे चले गए के रफी और दुखी मन मेरे के किशोर में दर्द की अभिव्यक्ति का फरक सिर्फ़ वे ही बखूबी कर सकते थे.

I am just listening to araay of his sweet and enchanting songs! What a pure , unadultrated mix of symphony & Melody !!

His music breathes of fresh born flowers, his songs are nestling places of whistling birds, tinkling bells and sobbing flutes, his orchestral creations contain both lyric and epic sweeps of design blended in such rare harmony of which only a composite genius like him is capable -- a genius who breathed music, dreamed music, lived music all his life.


उनके निधन पर दी गयी श्रद्धांजली पर कुछ अंश किशोर दा पर मेरी पिछली पोस्ट में भी आप सुन सकते हैं.

उनपर भारत सरकार नें भी सन २००६ में एक डाक टिकट निकाल कर उनका सन्मान किया था .

गायक के रूप में आराधना के गाये गीत सफल होगी तेरी आराधना पर राष्ट्रीय पुरस्कार १९७० में, और ज़िंदगी ज़िंदगी फ़िल्म में संगीत निर्देशन के लिये भी प्राप्त किया था.फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड़ भी फ़िल्म टॆक्सी ड्राईवर के लिये १९५४ में भी प्राप्त किया.

शास्त्रीय संगीत पर उनकी पकड़ भी क्या खूब थी जनाब. गाईड़ में लता के गाये गीत पिया तोसे नैना लागे रे में उनका कमाल सुनने लायक था. रूपक ताल में निबद्ध किये गये इस क्लासिकल गीत में सचिन दा के संगीत के विज़न का दर्शन होता है और भावनाओं की अभिव्यक्ति का ,Visual Feel का अहसास होता है.

इसके लिये तो लगता है मुझे एक और पोस्ट लिखना पडे़गी. (बुधवार को ज़रूर)

तलाश फ़िल्म में भी तेरे नैना तलाश करें में मन्ना डे की अप्रतिम गायकी के साथ सुरों का संयोजन और साथ में मृदंग या पखावज़ का तबले के साथ अनोखा मेल उनके सुजनशीलता की इन्तेहां थी. इन्टरल्युड़ में सरोद , सितार और बांसुरी,के साथ कहीं कहीं तार शहनाई तो कहीं कहीं ताल तरंग का भी बडे़ ही अधिकार पूर्वक उपयोग किया गया है.

यह गीत पहले बिरादरी पर जारी भी हो चुका है.

तो आपसे इजाज़त लेकर अपनी एक तमन्ना पूरी कर लूँ?

यह गाना पिछले दिनों यहाँ स्टेज पर गाया गया था . मन्ना दा को समर्पित एक पूर्ण कार्यक्रम -दिल का हाल सुने दिल वाला - में स्टेज पर प्रस्तुत गीत का विडियो देखें और सुने. गायक यहाँ नगण्य है. उसकी मस्ती का , सुरों के नादब्रम्ह का आप भी अनुभव लें.

मन्ना दा जैसे हिमालय को नापना किसी भी गायक के लिए मुमकिन नहीं ये बात तय है दोस्तों. मगर वादक कलाकारों के कौशल को सुन दाद ज़रूर दें , क्योकि सभी कलाकारों ने अपने अपने स्तर पर अपना रोल बखूबी निभाया है. एक ही की बोर्ड पर सभी वाद्य - सितार, ताल तरंग, तार शहनाई, सरोद, बांसुरी और क्या क्या. मृदंग नहीं था तो एक हाल में तबला और दूसरे पर ढोलक लेकर इफेक्ट पैदा किया है.

अगले रिलीज़ : -
कड़ी - २ - पिया तोसे नैना लागे रे ... मेराथोन गीत का सुरीला विवेचन
कड़ी - ३ - सचिन दा, गुरुदत्त,साहिर,हेमंत कुमार से जुडी एक कॉमन स्मृति विशेष (पिछले महिने की श्रद्धांजली)

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